राजस्थान के बीकानेर जिले के नोखा ब्लॉक में स्थित रासीसर गांव आज पूरे प्रदेश में विकास और समृद्धि की मिसाल बन चुका है। एक समय खेती पर निर्भर यह गांव अब ट्रांसपोर्ट उद्योग का हब बन चुका है और इसकी तरक्की की कहानी हर किसी को प्रेरणा देती है।
करोड़ों में टैक्स भरने वाला गांव-
रासीसर गांव के निवासी सालाना 10 करोड़ रुपये का टैक्स भरते हैं, जो राजस्थान के कई जिलों के कुल राजस्व से भी अधिक है। गांव की आबादी 15 हजार से ज्यादा है और यह दो ग्राम पंचायतों—रासीसर पुरोहितान और रासीसर बड़ा बास—में बंटा हुआ है। यहां के हर घर के सामने कोई न कोई कमर्शियल वाहन जैसे ट्रक, बस या ट्रोला नजर आना आम बात है।
ट्रांसपोर्ट का गढ़ बना गांव-
गांव में ट्रांसपोर्ट व्यवसाय की शुरुआत 1978 में मंडा परिवार द्वारा की गई थी। आज उनके पास 100 से अधिक ट्रक-ट्रेलर और 25 से ज्यादा बसें हैं। इस व्यवसाय को पूरे गांव ने अपनाया और अब रासीसर में करीब 1500 ट्रक-ट्रॉले, सैकड़ों बसें और 5000 से अधिक छोटे-बड़े वाहन हैं। गांव में 2000 से ज्यादा दोपहिया वाहन भी हैं। नोखा क्षेत्र में ट्रांसपोर्ट व्यवसाय की बढ़ती संख्या को देखते हुए प्रशासन ने यहां अलग से डीटीओ ऑफिस की स्थापना की है।
शिक्षा और आधुनिकता की ओर अग्रसर-
रासीसर गांव अब शिक्षा का भी केंद्र बन गया है। पहले जहां सिर्फ दो स्कूल थे, वहीं अब गांव में 10 से ज्यादा स्कूल हैं। गांव के युवा आईपीएस, आरएएस, इंजीनियर और डॉक्टर बनकर गांव का नाम रोशन कर रहे हैं। गांव पूरी तरह डिजिटल हो चुका है और हर मूलभूत सुविधा जैसे बिजली, पानी, सड़क और चिकित्सा उपलब्ध है।
बिजनेस की ओर बढ़ते कदम-
रासीसर के लोग नौकरी की बजाय खुद का व्यवसाय करना ज्यादा पसंद करते हैं। यहां ट्रांसपोर्ट के साथ-साथ दुकानें, फैक्ट्रियां और अन्य उद्योग भी तेजी से विकसित हो रहे हैं। गांव में आलीशान मकान, समृद्ध जीवनशैली और तेज़ी से बदलती सामाजिक तस्वीर इसे एक आधुनिक गांव के रूप में प्रस्तुत करती है।
रासीसर गांव का सफर इस बात का उदाहरण है कि अगर सही दिशा में मेहनत की जाए तो कोई भी गांव विकास की ऊंचाइयों को छू सकता है। यह गांव न केवल बीकानेर, बल्कि पूरे राजस्थान के लिए प्रेरणा का स्रोत है।