नई दिल्ली। मोदी सरकार ने देश की सामाजिक संरचना और आर्थिक असमानता को बेहतर तरीके से समझने की दिशा में ऐतिहासिक कदम उठाया है। केंद्रीय कैबिनेट ने सोमवार को जाति आधारित जनगणना को औपचारिक मंजूरी दे दी है। यह निर्णय लंबे समय से चली आ रही मांगों और सामाजिक न्याय की दिशा में केंद्र सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। इस फैसले की जानकारी देते हुए केंद्रीय मंत्री लक्ष्मी रजवाड़े ने इसे “न्यायसंगत समाज निर्माण की दिशा में क्रांतिकारी कदम” बताया।
क्या है जाति जनगणना?
जाति जनगणना के तहत देश के प्रत्येक नागरिक की जातिगत पहचान दर्ज की जाएगी। इससे यह स्पष्ट हो सकेगा कि देश में विभिन्न जातियों की वास्तविक संख्या कितनी है, उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति क्या है, और कौन-सी जातियां अब भी मुख्यधारा से वंचित हैं।
सरकार का तर्क
लक्ष्मी रजवाड़े ने प्रेस वार्ता में कहा कि “हमारी सरकार सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास की नीति पर काम कर रही है। जाति जनगणना के माध्यम से हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि कोई भी समाज पीछे न रह जाए।”
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इस डेटा का उपयोग सरकारी योजनाओं की अधिक प्रभावी क्रियान्विति, आरक्षण व्यवस्था के पुनर्मूल्यांकन और वंचित वर्गों की सही पहचान के लिए किया जाएगा।
राजनीतिक हलकों में हलचल
जाति जनगणना की मंजूरी को लेकर राजनीतिक गलियारों में खलबली मच गई है। जहां एक ओर विपक्षी दलों ने इस फैसले का स्वागत करते हुए इसे “देर से लिया गया सही फैसला” बताया, वहीं कुछ सत्तारूढ़ दलों के सहयोगियों ने इसके सामाजिक प्रभाव पर चिंता भी जताई है। हालांकि, सरकार ने भरोसा दिलाया है कि जनगणना के आंकड़े गोपनीय रहेंगे और किसी भी जाति के विरुद्ध इसका दुरुपयोग नहीं होने दिया जाएगा।
कब और कैसे होगी जनगणना?
गृह मंत्रालय के अनुसार, जाति जनगणना का कार्य अगले वर्ष की पहली तिमाही में शुरू किया जाएगा। इसके लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म विकसित किया जा रहा है ताकि पारदर्शिता और सटीकता सुनिश्चित की जा सके। विशेष रूप से प्रशिक्षित कर्मी घर-घर जाकर जानकारी एकत्र करेंगे।
जनता की प्रतिक्रियाएं
देश भर में इस फैसले को लेकर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। कई सामाजिक संगठनों और पिछड़ा वर्ग आयोगों ने इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा है कि इससे दशकों से चली आ रही सामाजिक असमानता की सही तस्वीर सामने आएगी। वहीं कुछ लोगों ने आशंका जताई है कि इससे जातिगत भेदभाव को और बढ़ावा मिल सकता है।
जाति जनगणना की मंजूरी को मोदी सरकार का एक बड़ा और साहसिक फैसला माना जा रहा है। यह न केवल देश की सामाजिक नीतियों को एक नई दिशा दे सकता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित कर सकता है कि विकास के लाभ वास्तव में उन लोगों तक पहुंचे, जिन्हें इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है।
क्या यह फैसला देश में नई सामाजिक क्रांति का आगाज करेगा? आने वाले समय में इसका प्रभाव स्पष्ट होगा।