पाली। शहर की तरक्की और समाजसेवा की मिसाल बन चुके मरहूम जनाब सैय्यद अहसान अली चुड़ीगर उर्फ बाबूभाई, आज भले ही हमारे बीच नहीं हैं, मगर उनकी यादें, उनके किए हुए काम और उनका जुनून आज भी शहर की रगों में दौड़ता है। वह एक ऐसी अज़ीम शख्सियत थे, जिनका मकसद सिर्फ कारोबार नहीं, बल्कि शहर और कौम की सेवा था।
मुसाफ़िरख़ाने का सपना, जुनून बनकर साकार हुआ
पाली शहर के पुराने बस स्टैंड पर बनी मुसाफ़िरख़ाने की शानदार इमारत, बाबूभाई के ख्वाबों और मेहनत की जीती-जागती तस्वीर है। इसकी नींव से लेकर तामीर तक उन्होंने हर कठिनाई को हौसले से पार किया। अगर ये इमारत बोल सकती, तो बाबूभाई की मेहनत के क़िस्से खुद सुनाती।
चुड़ी उद्योग को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया
बाबूभाई सिर्फ समाजसेवी नहीं, बल्कि एक काबिल उद्योगपति भी थे। उन्होंने पाली के पारंपरिक चुड़ी उद्योग को आधुनिकता से जोड़ा और सैकड़ों-हजारों लोगों को रोजगार का जरिया दिया।
1970 के दशक में जब उन्होंने जापानी मोनोमर मशीन पाली लाकर स्थापित की, तब यह तकनीक एक क्रांति थी। उनके इस कदम ने पाली के चुड़ी उद्योग को पूरे देश में एक पहचान दिलाई।
सेवा का जज़्बा आखिरी सांस तक
16 नवम्बर 1979 को जब उनकी फैक्ट्री में आग लगी, तो उन्होंने अपने कारीगरों की जान बचाते हुए खुद को जोखिम में डाल दिया। इस दौरान वह गंभीर रूप से घायल हो गए और इलाज के दौरान इस फानी दुनिया को अलविदा कह गए। उनका यह बलिदान उनकी इंसानियत और सेवा-भाव का सबसे बड़ा सबूत है।
एक अमर नाम, एक न मिटने वाली विरासत
बाबूभाई ने पाली शहर को दो ऐसी अनमोल सौगातें दीं —
1. मुसाफ़िरख़ाना
2. आधुनिक चुड़ी उद्योग
ये दोनों उनकी याद को हर दिन ज़िंदा रखते हैं।
RJ22 News मरहूम बाबूभाई चुड़ीगर को ख़िराज-ए-अक़ीदत पेश करता है और अल्लाह तआला से दुआ करता है कि उन्हें जन्नतुल फिरदौस में आला मक़ाम अता फरमाए।
– इंशा’अल्लाह, बाबूभाई का नाम पाली की तारीख़ में सुनहरे हरफों में हमेशा लिखा जाएगा।