तिरुवनंतपुरम, : यमन में भारतीय नर्स निमिषा प्रिया की मौत की सजा पर फिलहाल रोक लगा दी गई है, जिससे उनकी जिंदगी बचाने की उम्मीदें बढ़ गई हैं। यह सफलता केरल के बेहद प्रभावशाली और प्रतिष्ठित ग्रैंड मुफ्ती शेख अबू बकर कंथापुरम की अथक कोशिशों का परिणाम है, जिन्होंने यमन के मौलवियों से व्यक्तिगत रूप से बात कर इस मामले में हस्तक्षेप किया।
94 वर्षीय शेख अबू बकर कंथापुरम ने निमिषा प्रिया की जान बचाने के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, यह दर्शाता है कि इस्लाम में कानून किस तरह से अलग संदर्भों में काम करता है। उन्होंने यमन के धार्मिक नेताओं को समझाया कि किस तरह इस्लामी कानून में दया और क्षमादान की गुंजाइश है, खासकर ‘ब्लड मनी’ (खून-बहा) के भुगतान के माध्यम से।
कौन हैं शेख अबू बकर कंथापुरम?
शेख अबू बकर अहमद (पूरा नाम: कंथापुरम ए.पी. अबू बकर मुसलियार) केरल के सबसे सम्मानित और प्रभावशाली इस्लामी विद्वानों में से एक हैं। वह भारतीय सुन्नी मुसलमानों के एक प्रमुख नेता और अखिल भारतीय सुन्नी जमीयतुल उलमा के महासचिव हैं।
उनकी पहचान सिर्फ केरल तक सीमित नहीं है, बल्कि उनका प्रभाव पूरे भारत और मध्य पूर्व में फैला हुआ है। वह एक शिक्षाविद्, आध्यात्मिक नेता और विभिन्न सामाजिक व धार्मिक पहलों के प्रमुख संरक्षक हैं।
प्रमुख भूमिकाएं और योगदान:
* मार्काज़ुस्सकफथिसुन्निया (मार्काज़): वह कालीकट में स्थित मार्काज़ुस्सकफथिसुन्निया (मार्काज़) के संस्थापक और कुलाधिपति हैं, जो भारत के सबसे बड़े इस्लामी शैक्षिक परिसरों में से एक है। यह संस्थान हजारों छात्रों को धार्मिक और आधुनिक शिक्षा प्रदान करता है, जिसमें अनाथ और गरीब बच्चे भी शामिल हैं।
* धार्मिक नेतृत्व: अबू बकर मुसलियार सुन्नी इस्लामी विचारधारा के एक प्रमुख प्रतिपादक हैं और उन्होंने विभिन्न धार्मिक मुद्दों पर अपनी राय व्यक्त की है। वह हमेशा शांति, सहिष्णुता और अंतर-धार्मिक सद्भाव के प्रबल पक्षधर रहे हैं।
* सामाजिक सुधार: उन्होंने शिक्षा, गरीबी उन्मूलन और सामुदायिक विकास के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उनका मानना है कि शिक्षा ही समाज को बदलने की कुंजी है।
* अंतर्राष्ट्रीय संबंध: उनके व्यापक अंतरराष्ट्रीय संबंध हैं, खासकर मध्य पूर्वी देशों के धार्मिक और राजनीतिक नेताओं के साथ। यह संबंध ही उन्हें निमिषा प्रिया जैसे जटिल मामलों में हस्तक्षेप करने में सक्षम बनाता है।
निमिषा प्रिया के मामले में उनका हस्तक्षेप उनकी मानवीय संवेदनशीलता और इस्लामी सिद्धांतों की गहरी समझ को दर्शाता है। उन्होंने यह साबित किया है कि धर्म केवल नियमों का पालन करने का नाम नहीं है, बल्कि इसमें दया, क्षमा और जीवन बचाने की शक्ति भी निहित है। 94 वर्ष की आयु में भी उनकी सक्रियता और जनहित में उनके प्रयास प्रेरणादायक हैं और उन्होंने एक बार फिर साबित कर दिया है कि एक सच्चा नेता समाज के लिए कितना कुछ कर सकता है।