जोधपुर। राजस्थान उच्च न्यायालय, जोधपुर ने गत 17 जनवरी 2025 को पारित एक अहम फैसले में कहा है कि साइबर फ्रॉड के मामले में बिना ठोस सबूत के पूरे बैंक खाते को फ्रीज नहीं किया जा सकता। न्यायमूर्ति विनीत कुमार माथुर ने यह आदेश पुनित ओझा बनाम भारतीय स्टेट बैंक व अन्य मामले में पारित किया। याचिकाकर्ता पुनित ओझा, निवासी ब्रह्मपुरी, जोधपुर ने अपनी याचिका में बताया था कि उनके एचडीएफसी बैंक खाते को छत्तीसगढ़ पुलिस के एक नोटिस के आधार पर फ्रीज कर दिया गया था, जबकि उन्होंने कोई अवैध लेनदेन नहीं किया था। ओझा ने अदालत से गुहार लगाई कि उन्हें अपने खाते का संचालन करने दिया जाए और सिर्फ विवादित राशि को ही फ्रीज किया जाए।
न्यायालय का आदेश:
अदालत ने पाया कि मामले में केवल 510 रुपये की राशि ही कथित साइबर धोखाधड़ी से संबंधित है। इसलिए, अदालत ने निर्देश दिया कि –
1. याचिकाकर्ता का खाता डी-फ्रीज किया जाए।
2. केवल 510 रुपये की राशि को फ्रीज रखा जाए।
3. याचिकाकर्ता को बैंक खाता संचालन की अनुमति दी जाए।
4. खाता तब तक बंद न किया जाए जब तक जांच एजेंसी अनुमति न दे।
5. याचिकाकर्ता को जांच में सहयोग करना होगा।
6. याचिकाकर्ता वाणिज्यिक लेन-देन के लिए नया चालू खाता खोल सकता है।
महत्वपूर्ण बात यह भी रही कि अदालत ने स्पष्ट किया कि अगर भविष्य में याचिकाकर्ता किसी अवैध लेनदेन में दोषी पाया गया, तो उसे राशि लौटानी होगी और कानून के तहत कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा।
आरटीआई एक्टिविस्ट मोहम्मद फैजान का कहना…
इस आदेश पर आरटीआई एक्टिविस्ट मोहम्मद फैज़ान का कहना है कि यह फैसला उन नागरिकों के लिए राहत देने वाला है, जिनके खाते बिना जांच या सबूत के फ्रीज कर दिए जाते हैं। उन्होंने कहा कि अदालत ने यह साफ संदेश दिया है कि सिर्फ शक के आधार पर किसी की आजीविका से नहीं खेला जा सकता। यह आदेश बैंकों और जांच एजेंसियों को कानून के दायरे में रहकर कार्य करने की दिशा में मजबूती देगा।